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Monday, May 17, 2010

शिवमठ पर होने वाली नित्य प्रति की आरती

क्रीड़ा - बंधु मातु के प्रकाशवान अम्बक से।
अनुजों के ताप के समूल नाशकारी हो॥
नग्न- रूप- देव, कवि- वाणी से परे हो तुम।
तात तुम पालक हो, जगत- संहारी हो।।
भक्त- हित- काज, करने में तीव्रता- अतीव।
दलितों के हेतु, दानवीर- त्रिपुरारी हो।।
क्रोध की कठोरता हो कुटिल- कुजन हेतु।
मृदुल- सुजन हेतु शांति -सुखकारी हो॥
लपटे फनीन्द्रों के फनो की मणियों की दुति।
फैलती तो सकल दिशाएं पीत होती है।।
लगता है जैसे काम- अरि ने दिशा- त्रिया के।
आनन पे प्रेम वस केशर ही पोती है॥
ऐसे मद- अंध- गज- असुर के चर्म धारी।
देवता को देखि देह, भीति- भय खोती है॥
भोले शिव- शंकर जय भोले शिव- शंकर की।
गूँज हर ओर, हर ओर गूँज होती है॥
दिव्य- भाल- लोचन में धधक रही जो ज्वाल।
काल बन मदन को राख में मिलाया है ॥
ब्रम्हादिक- देवराज करते प्रणाम जिन्हें।
जिनके ललाट चन्द्र -रश्मियों की काया है॥
जिनकी जटाओं में निवास मातु -गंग करें।
भंग- संग -अम्बकों ने रक्त- रंग पाया है ॥
धर्म- अर्थ -काम -मोक्छ, सकल फलों का, ।
दे दो दान, मान- साथ भोले, तुझको बुलाया है ॥
इन्द्र अदि देवों के मुकुट के प्रसून माल ।
से गिरा पराग -पुष्प- धूसित- चरण है ॥
नागराज वासुकी लपेटे जिनका हैं जूट ।
जिनके ललाट मिली बिधु को शरण है॥
एक तो अमावस की मध्य रात्रि कालिमा हो।
उसपे भी छाये सब ओर घिरे घन हैं॥
उससे भी काली- कालिमा दिखा रही है ग्रीव।
शिव की, करे जो जग -तम का हरण है॥
नील- कंज- कान्ति, मात करती सुनील- कंठ।
कामदेव- मर्दक, तुम्हारी जयकार हो॥
दच्छ -यग्य -नासक, गजासुर -विनासक हो।
देवाताधिपति -देव, जगती का सार हो॥
मंगल- मुहूर्तकारी, चौसठ -कला से युक्त।
तांडव का नृत्य, मंद- डमरू -पुकार हो॥
बाघ -चर्म -धारी और विजन -बिहारी -शिव।
कर- बध्य- याचना तुम्हारी जयकार हो।।
पाहन में पुष्प में तुम्हारी रूप छवि।
सर्प मोतियों के माल देखूं तो भी तेरा ध्यान हो॥
रत्न बहुमूल्य हों या सैकत -सरित- कूल।
सबमें उपासना तुम्हारी भगवान हो॥
त्रण हो या नेत्र -कंज- प्रमदा -सुभग -अंग।
रंक- भूप सबमें तुम्हारा दिव्य ज्ञान हो॥
मुख से बचन जो भी निकले तुम्हारा नाम।
लोचन जिधर देखें आपका ही ध्यान हो।।
वासनाओं को समूल नस्ट कर कब देव।
सुचि सुरसरि तट कुंज में रहूँगा मैं॥
कब शिव सम्मुख ले अंजुली में छीर खड़ी।
नारियों के व्यूह मध्य गौरी को लाखूंगा मैं॥
किस काल भाग्यवस शैलजा को प्राप्त हुए।
शंकर से श्रेष्ठ पति प्रभु को भजूंगा मैं ॥
दे दो बरदान भोले रंजन की लेखनी को।
तेरा बस तेरा पद गान ही करूंगा मैं॥
शुचि- जूट- कानन से पावन- प्रवेग- नीर।
नील- कंठ में विशाल सर्प- माल भा रही ॥
डम डम डम डम डमरू की ध्वनि तेज।
तांडव की तीव्र नृत्य- गति हर्षा रही।।
तेज -विकराल लाल -लोचन हैं शंकर के।
प्रांगन -ललाट -अग्नि- मदन जला रही॥
देवी -पार्वती- कुचाग्र -चित्र रचाने में श्रेष्ठ।
भोले शिव रूप छवि अंतर समां रही ॥
रंजन कृत शिव तांडवक् नित्य पाठ कर जोय।
तन मन विभव कलेश सब मिटे प्रफुल्लित होय ॥
शिव तांडवक् के रचनाकार
महंत रंजन दास
महंत ज्योतिर्लिंगा शिवमठ
ब्रिन्दावन योजना संख्या ३
सेक्टर १२, निकट बड़ी पानी की टंकी
बरौली लखनऊ

ज्योतिर्लिंगा शिवमठ लखनऊ का इतिहास

शिवमठ ज्योतिर्लिंगा आज जिस स्थान पर स्थित है उस स्थान के बारे में कहा जाता है कि सैकड़ों वर्षों से उस स्थान पर एक नाग आया करता था तथा आज भी उस स्थान पर जीवित ब्रध्य लोगों से बात करने पर यह बात उभर आती है कि उस नाग को उन लोगों ने बहुत बार देखा है। शिवमठ के स्थान पर कितने वर्षों से पूजन व पाठ होतो रहा है इस बारे में तो बस इतना ही पता चलता है कि आज से लगभग ३०० वर्ष पहले यहाँ पर शमशान घाट था तथा यहाँ पर लोग अपने सम्बन्धियों को जलाकर समीप स्थित कुवें पर पानी पीते थे। अब से लगभग १०० वर्ष पहले यहाँ कि जमीं को जब बेचा जाने लगा तो खुदाई के दौरान वहां पर पुराने कई पत्थर के तुकडे मिले जिसे देखकर ऐसा लगता था कि जैसे यहाँ पर कोई मंदिर पहले से बना हो। शिवमठ के वर्तमान स्थान को श्री राजेश कुमार तिवारी के नाम माकन बनाने के लिए स्थानीय भूमि स्वामी ने विक्रय कर दिया। श्री राजेश कुमार तिवारी ने जब उस स्थान कि खुदाई करायी तो रात में उन्हें सपना आया कि तुम इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करो अन्यथा मैं तुम्हें वहां पर रहने नहीं दूंगा । यह सुनकर मैंने यह बात अपने अन्दर ही दबा ली क्योंकि यदि मैं इस बात का जिक्र परिवार के किसी और सदस्य से करता तो हो सकता था की वह दर जाता यही सोचकर मैंने चुपचाप इस स्वप्ना का जिक्र किसी से भी नहीं किया। कुछ दिनों के बाद ही मेरे परिवार के ऊपर मनो विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा । अचानक मेरी धर्मपत्नी की तबियत ख़राब हो गयी जिसका कोई कारन अज तक मैं समझ नहीं पाया। पी जी आई में उनको भारती करना पड़ा । चूंकि मुझे स्वप्न वाली बात यद् थी इसलिए मैंने मन में ही यह मन लिया की अब तो मुझे मंदिर बनवाना ही है चाहे जो भी समस्या हो परन्तु मेरी धर्मपत्नी ठीक होकर वापस आ जाएँ । अस्पताल से वापस आते ही मैंने तत्काल मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। जैसे तैसे उस पुराने स्थान को सुरक्षित रखते हुए मैंने खुदाई कराकर वहां पर प्राप्त पथ्थरों को सुरक्षित रखकर उनकी पूजा करने लगा और नियम से आरती का क्रम भी सुरु कर दिया। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह भी है की आज भी वह पत्थर जो खुदाई में निकले थे शिव मठ मंदिर में दर्शनार्थ सुरक्षित हैं। धीरे धीरे लोगों का हुजूम उस स्थान पर लगाने लगा और लोगों के सहयोग से तथा मेरे एक सहयोगी श्री संजय नारायण जी के असीम सहयोग से तथा कड़ी मेहनत से आज उस स्थान का काया कल्प कराया। वर्ष २००२ में उस स्थान पर एक नए शिव लिंग की प्राण प्रतिस्था की गयी तथा ब्राम्हण होने के नाते मैंने सफ़ेद शिव लिंग की स्थापना की। भोलेनाथ को पता नहीं क्या मंजूर था प्राण प्रतिष्ठा के दूसरे ही दिन सफेत शिव लिंग का रूप भोलेनाथ के गले की तरह नीला हो गया और शिव लिंग के ऊपर स्पष्ट ओमकार जो आज भी स्पस्ट रूप से विद्यमान है और दर्शकों द्वारा नित्य पूजित भी है । शिव मठ पर हुए इस चमत्कार को तत्कालीन समाचार पत्रों में विशेष रूप से छपा तथा लखनऊ से प्रकाशित लगभग सभी समाचार पत्रों में इस शिवलिंग का चमत्कार प्रकाशित हुआ । ऐसा कोई भी टीवी चैनल नहीं था जिसने ज्योतिर्लिंग शिवमठ की तस्वीर न दिखाई हो। फिर क्या था भगवान भोलेनाथ के इस महिमा को लोगों ने घर बैठकर अपने टीवी सेट पर देखा और राजस्थान जयपुर एवं देश के विभिन्न स्थानों से लोग इस चमत्कार को देखने आने लगे। अब यह एक विश्वा प्रसिध्य ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गया।

ज्योतिर्लिंगा शिवमठ लखनऊ का इतिहास